एक बनिया था बड़ा कंजूस
चाय में गिरी मक्खी को भी वो लेता था चूस
कंजूस था वो इतना चौखा
हर डील में वो बचाना चाहता था एक खोखा
चाहे देना पड़े उसे कोई भी धोखा
वो ढूँढता रहता था सदैव कोई मौका
पत्नी उसकी पड़ गई बीमार बहुत एक बार
बचने का नहीं था उसको ,उसका एतबार
वो उसके इलाज पर नहीं करना चाहता था बिल्कुल भी खर्चा
इसलिए वो ढूंढ रहा था डाक्टर का कोई पुराना पर्चा
अंत में जब नहीं रही उसके बचने कि आश
वो आया अपनी पत्नी के पास
और बोला जा रहा हूँ डाक्टर के पास
मगर जाते जाते तू मत कर जाना एक चूक
अगर तुझे लगे नहीं बचेगी तो इस जलती मोमबती को मार देना फूँक
चाय में गिरी मक्खी को भी वो लेता था चूस
कंजूस था वो इतना चौखा
हर डील में वो बचाना चाहता था एक खोखा
चाहे देना पड़े उसे कोई भी धोखा
वो ढूँढता रहता था सदैव कोई मौका
पत्नी उसकी पड़ गई बीमार बहुत एक बार
बचने का नहीं था उसको ,उसका एतबार
वो उसके इलाज पर नहीं करना चाहता था बिल्कुल भी खर्चा
इसलिए वो ढूंढ रहा था डाक्टर का कोई पुराना पर्चा
अंत में जब नहीं रही उसके बचने कि आश
वो आया अपनी पत्नी के पास
और बोला जा रहा हूँ डाक्टर के पास
मगर जाते जाते तू मत कर जाना एक चूक
अगर तुझे लगे नहीं बचेगी तो इस जलती मोमबती को मार देना फूँक
हा हा हा
ReplyDeleteबनिये ऐसे ही होते हैं
बनिया है तो कंजूस कहने की क्या जरुरत
प्रणाम